1

kark sankranti - entry of Sun into Cancer

17 जुलाई 2015 बृहस्पति वार को  धर्मअध्यात्म का महीना पुरुषोत्तम मास खत्म  होने के साथ अर्द्ध-रात्रि को सूर्यदेव कर्क राशि में संक्रमण करेंगे| सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश का समय 'कर्क संक्रान्ति', 'सावन संक्रान्ति' या 'श्रावण संक्रान्ति' कहलाता है। कर्क संक्रांति से लेकर मकर संक्रांति के बीच के छः मास के काल को दक्षिणायन कहते हैं। सूर्य के दक्षिणायन' होने को 'कर्क संक्रान्ति' कहा जाता है। कर्क संक्रान्ति में दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं। शास्त्रों एवं धर्म के अनुसार 'उत्तरायण' का समय देवताओं का दिन तथा 'दक्षिणायन' देवताओं की रात्रि होती है।
इस प्रकार, वैदिक काल से 'उत्तरायण' को 'देवयान' तथा 'दक्षिणायन' को 'पितृयान' कहा जाता रहा है। कर्क संक्रान्ति समय काल में सूर्य को पितरों का अधिपति माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि उत्तरायण प्रकाशमय है और दक्षिणायन अंधकारमय | यह ऐसा समय चक्र है जब ईश्वरीय शक्ति अपने शयन स्थान पर होती है। ईश्वर की शक्ति कम हो जाती है और आसुरी शक्तियों का प्रकोप बढ़ जाता है। कहते हैं इस समय स्वर्ग के दरवाज़े भी बंद होते हैं। इसलिए इस काल में षोडश कर्म और अन्य मांगलिक कर्मों के आतिरिक्त अन्य कर्म ही मान्य होते हैं।
 'कर्क संक्रान्ति' से वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है। देवताओं की रात्रि प्रारम्भ हो जाती है और 'चातुर्मास' या 'चौमासा' का भी आरंभ इसी समय से हो जाता है। यह समय व्यवहार की दृष्टि से अत्यधिक संयम का होता है, क्योंकि इसी समय तामसिक प्रवृतियां अधिक सक्रिय होती हैं।
कर्क संक्रान्ति के पुण्य समय उचित आहार-विहार पर विशेष बल दिया जाता है। इस समय में शहद का प्रयोग विशेष तौर पर करना लाभकारी माना जाता है।
यदि संक्रांति अर्द्ध-रात्रि के उपरांत हो तो दूसरे दिन सूर्योदय के बाद "पुण्य-काल" होता है।  "ब्रह्मवैवर्त पुराण" में भी लिखा गया है कि "कर्क-संक्रांति" में अगली 30 घटी यानि 12 घंटे तक पुण्य-काल मानी जाती है।
इसी प्रकार "भविष्य-पुराण" में भी कहा गया है कि अर्द्ध-रात्र के समय यदि सूर्यदेव राशि को छोड़कर अगली राशि में जाए तो तो अगले दिन स्नान दान कर्तव्य है।
कर्क संक्रांति के साथ पुष्य नक्षत्र योग और गुप्त नवरात्र का संयोग बनने से कर्क संक्रांति का महत्त्व और बढ़ जाता है 
कर्क जल राशि और मित्र राशि होने से आने वाला समय वर्षा के साथ-साथ व्यापारिक समझौते, राजनीतिक क्षेत्र में सुधार वाला रहेगा। ये संक्रांति 20 मुहूर्त संक्रांति है, जो व्यापार के साथ धान्यादि खाद्य पदार्थ में मंदी का संचार करेगा। गुरुवार दोपहर 2:49 बजे पुष्य नक्षत्र शुरू होगा, जो शुक्रवार शाम 4:25 बजे तक रहेगा। 17 से ही गुप्त नवरात्र भी शुरू होंगे। इसी दिन आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया को जगन्नाथ रथयात्राएं भी निकलेंगी।
कर्क संक्रांति अमावस्या में होने से खप्पर योग भी बन रहा है। संक्रांति और अमावस्या एक ही वार को होने से खप्पर योग बनता है। खप्पर योग प्रकृति प्रकोप, सीमाओं पर सैनिक हलचल और प्रजा में भय उत्पन्न करने वाला होता है। इस संक्रान्ति में व्यक्ति को सूर्य स्मरण, आदित्य स्तोत्र एवं सूर्य मंत्र इत्यादि का पाठ व पूजन करना चाहिए, जिससे अभिष्ट फलों की प्राप्ति होती है। संक्रान्ति में की गयी सूर्य उपासना से दोषों का शमन होता है। संक्रान्ति में भगवान विष्णु का चिंतन-मनन शुभ फल प्रदान करता है।



No comments:

Post a Comment

We appreciate your comments.

Lunar Eclipse 2017