सिद्धांत
रूप में सूर्योदय से सूर्योदय पर्यंत रहने वाली चतुर्दशी शुद्धा निशीथ
(अर्धरात्रि) व्यापिनी ग्राह्य होती है। यदि यह शिवरात्रि त्रिस्पृशा
(त्रयोदशी-चतुर्दशी- अमावस्या के स्पर्श की) हो, तो परमोत्तम मानी गयी है। मासिक
शिवरात्रि में, कुछ विद्वानों के मतानुसार, त्रयोदशी विद्धा बहुत रात तक रहने वाली
चतुर्दशी ली जाती है। इसमें जया त्रयोदशी का योग अधिक फलदायी होता है।
स्मृत्यंतरेऽपि
प्रदोषव्यापिनी ग्राह्या शिवरात्रिः चतुर्दशी।
रात्रौ
जागरणं यस्मांतस्मांतां समुपोषयेत्।।
अत्र
प्रदोषो रात्रिः ।
उत्तरार्धे
तस्यां हेतुत्वोक्तेः।
स्मृत्यंतर
में भी कहा गया है, कि शिवरात्रि में चतुर्दशी प्रदोषव्यापिनी ग्रहण करें। रात्रि
में जागरण करें। अतः उसमें उपवास करें। यहां पर प्रदोष शब्द से मतलब रात्रि का
ग्रहण है। उत्तरार्ध में उसका कारण बताया गया है:
कामकेऽपि-
आदित्यास्तमये काले अस्ति चेद्या चतुर्दशी।
तद्रात्रिः
शिवरात्रिः स्यात्सा
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार
सूर्यास्त से रात्रि आरंभ होने तक का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस समय भगवान शिव
की पूजा करने से भगवान शिव बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। इसका कारण यह माना जाता है कि त्रयोदशी तिथि के
दिन प्रदोष काल भगवान शिव प्रसन्न मुद्रा नृत्य करते हैं। इस समय इनकी पूजा करने
से शिव अति प्रसन्न होते हैं।
पुराण में चार प्रकार के शिवरात्रि पूजन का वर्णन है। मासिक शिवरात्रि, प्रथम आदि शिवरात्रि, तथा
महाशिवरात्रि।
पुराण वर्णित अंतिम शिवरात्रि है-नित्य शिवरात्रि। वस्तुत: प्रत्येक
रात्रि ही 'शिवरात्रि' है | यही
मासिक शिवरात्रि यदि मंगलवार के दिन पड़े तो उसे भौम प्रदोष व्रत कहते हैं।
मंगलदेव ऋणहर्ता देव हैं। उस दिन संध्या के समय यदि भगवान भोलेनाथ का पूजन करें तो
भोलेनाथ की, गुरु की कृपा से हम जल्दी ही कर्ज से मुक्त हो सकते हैं। इस दैवी
सहायता के साथ थोड़ा स्वयं भी पुरुषार्थ करें। पूजा करते समय यह मंत्र बोलें –
मृत्युंजयमहादेव त्राहिमां शरणागतम्।
जन्ममृत्युजराव्याधिपीड़ितः कर्मबन्धनः
भौम
प्रदोश व्रत के दिन शिव की पूजा करने से मंगल ग्रह के कारण प्राप्त होने वाले अशुभ
ग्रहों के प्रभाव में कमी आती है। आरोग्य सुख की प्राप्ति होती है और शरीर
उर्जावान एवं शक्तिशाली होता है। मंगलवार के दिन प्रदोष व्रत होने से इस दिन
संध्या के समय हनुमान चालीसा के पाठ का भी कई गुणा लाभ मिलता है। मंगल दोष के
प्रभाव को कम करने के लिए इस दिन मसूर की दाल, लाल वस्त्र, गुड़, तांबा का दान
करना उत्तम फलदायी होता है।
मंगल
की शांति के लिए जो लोग प्रदोष व्रत करना चाहते है उनके लिए नियम यह है कि पूरे
दिन व्रत रखकर शाम के समय भगवान शिव एवं हनुमान जी की पूजा करें। हनुमान जी को
बूंदी के लड्डू अथवा बूंदी अर्पित करके लोगों में प्रसाद बांटें। इसके बाद भोजन
करें।
No comments:
Post a Comment
We appreciate your comments.