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Why adhik mas is called purushottam mas


अधिक मास: 
ज्योतिषीय मान्यतानुसार  सूर्य प्रतिमास एक राशि पर संक्रमण करता है और उसे उस राशि की संक्रान्ति कहते हैं। सभी 12 राशियों की संक्रान्ति के पश्चात नवसंवत्सर आता है।
असंक्रांति मासोऽधिमासः स्फुटः स्यात्‌,
द्विसंक्रांति मासः क्षयाख्यः कदाचित्‌॥

स्पष्टार्कसंक्रान्तिविहीन उक्तो मासोSधिमासः क्षयमासकस्तु |
द्विसंक्रमस्तत्र विभागयोः स्तस्तिथिर्हि मासौ प्रथमान्त्यसंज्ञौ || - मुहूर्त चिंतामणि
संक्रान्ति रहित मास यानि जिस मास में सूर्य-संक्रांति नहीं पड़ती, उसी को "अधिक मास" की संज्ञा दे दी जाती है तथा जिस मास में दो सूर्य संक्रांति का समावेश हो जाय, वह "क्षयमास" कहलाता है ।

पुरुषार्थ चिन्तामणि के अनुसार संक्रान्ति रहित अधिमास (मलमास) 28 से 36 माह के भीतर आता है।
गणितज्‍योतिष के अनुसार सौर-वर्ष का मान 365 दिन, 15 घड़ी, 22 पल और 57 विपल हैं। जबकि चांद्रवर्ष 354 दिन, 22 घड़ी, 1 पल और 23 विपल का होता है। इस प्रकार दोनों वर्षमानों में प्रतिवर्ष 10 दिन, 53 घटी, 21 पल (अर्थात लगभग 11 दिन) का अन्तर पड़ता है। यह अंतर 32.5 माह के बाद यह एक चंद्र माह के बराबर हो जाता है। इस अन्तर में समानता लाने के लिए चांद्रवर्ष 12 मासों के स्थान पर 13 मास का हो जाता है।
सौर वर्ष और चांद्र वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने के लिए हर तीसरे वर्ष पंचांगों में एक चान्द्रमास की वृद्धि कर दी जाती है। इसी को अधिक मास या अधिमास या मलमास कहते हैं। अधिक मास को पुरुषोत्तम या मल मास, अधिमास, मलिम्लुच, संसर्प, अंहस्पति मास भी कहा जाता है |
वरिष्टसिद्धांत में लेख है, प्रत्येक 32 माह 16 दिन व 4 घटी के बाद अधिक मास आता है तथा प्रत्येक 141 वर्ष, उसके पश्चात 19 वर्ष, बाद क्षय मास होता है| कोई भी चांद्र वर्ष 11 मास का नही होता, क्यूंकि जिस वर्ष में क्षय मास होता है उस वर्ष अधिक मास भी अवश्य होता है|
इस साल 17 जून 2015 से 16 जुलाई 2015 तक अधिक मास के योग बन रहे हैं। वर्ष 2015 में सूर्य की मिथुन संक्रांति में ही आषाढ़ की दो अमावस्याएं व्यतीत हो जाएंगी। पहली अमावस्या के बाद दूसरी अमावस्या तक का मास श्रीपुरुषोत्तम मास होगा। इस प्रकार 2015 में दो आषाढ़ मास होंगे।
धर्म ग्रंथों के अनुसार अधिक मास के 3 प्रकार बताए गए हैं :
सामान्य अधिक मास, संसर्प अधिक मास और मलिम्लुच अधिक मास
जो अधिकमास क्षयमास के बिना आता है अर्थात वर्ष में केवल एक अधिक मास आता है, वह सामान्य अधिक मास होता है।
संसर्प अधिक मास क्षयमास के पहले आता है, वहीं मलिम्लुच अधिक मास क्षयमास के बाद। ये दोनों अधिक मास क्षयमास के साथ ही आते हैं। (क्षयमास केवल कार्तिक, मार्ग व पौस मासों में होता है। जिस वर्ष क्षय-मास पड़ता है, उसी वर्ष अधि-मास भी अवश्य पड़ता है परन्तु यह स्थिति 19 वर्षों या 141 वर्षों के पश्चात् आती है। जैसे विक्रमी संवत 2020 एवं 2039 में क्षयमासों का आगमन हुआ।
आषाढ़ मास में मलमास लगने का संयोग दशकों बाद बनता है। इससे पूर्व 1996 में यह संयोग बना था और अगली बार 2035 में यह संयोग बनेगा।  जुलाई से दिसंबर तक पड़ने वाले त्योहार मौजूदा साल की तिथियों के मुकाबले दस से 20 दिन तक की देरी से आएंगे। यह स्थिति अधिक मास के कारण बनेगी।  2012 में अधिक मास होने के कारण दो भाद्रपद थे और 2015 में दो आषाढ़ होंगे, जबकि 2018 में 16 मई से 13 जून तक दो ज्येष्ठ होंगे|
शास्त्रानुसार-
         यस्मिन चांद्रे न संक्रान्ति: सो अधिमासो निगह्यते 
तत्र मंगल कार्यानि नैव कुर्यात कदाचन्।
        यस्मिन मासे द्वि संक्रान्ति क्षय: मास: स कथ्यते
                     तस्मिन शुभाणि कार्याणि यत्नत: परिवर्जयेत।। - ब्रह्म सिद्धांत
संक्रांति वाला माह शुद्ध माह और बिना संक्रांति वाला ( अधिक मास ) अशुद्ध माना जाता है | अधिक मास या क्षय मास में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य, शुभ एवं पितृ कार्य वर्जित माने गए हैं।
त्याज्य होने के बाद भी इसे पुरुषोत्तम मास  कहे जाने के पीछे एक पौराणिक कथा है। हमारे पंचांग में तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं सभी मास के कोई न कोई देवता या स्वामी हैं, परंतु मलमास या अधिक मास का कोई स्वामी नहीं होता सिर्फ मलमास ही स्वामी रहित है , मलमास अपने त्याज्य, संक्रान्ति रहित, स्वामी-हीन होने से क्षुब्ध हो विष्णु के पास गया और कहने लगा ‘कृपानिधान मुझे पूरे विश्व ने तिरस्कृत किया क्योंकि मैं स्वामी, संक्रान्ति तथा मांगलिक कार्यों से हीन हूं अत: मेरा उद्धार करें।’
मलमास की व्यथा सुन श्री विष्णु का हृदय द्रवित हो उठा। उन्होंने कहा, ‘तुम व्यथित मत हो। जगत में जिसका भी कोई नाम, वंश, गोत्रादि नहीं होता उसे मैं अपना नाम तथा आधिपत्य प्रदान करता हूं। अत: मैं तुम्हें भी अपना पुरुषोत्तम नाम प्रदान करते हुए वर देता हूं कि पुरुषोत्तम माह में जो भी व्यक्ति मेरी उपासना, पूजा, ध्यान, स्तवन, व्रतानुष्ठान करेगा उसे मेरे गोलोक की प्राप्ति होगी इसमें रंचमात्र संदेह नहीं है।’
अहमेते यथा लोक प्रथितः पुरुषोत्तमः,
तथायमती लोकेषु प्रथित पुरुषोत्तमः
श्री विष्णु से वरदान पाकर मलमास पुरुषोत्तम माह कहलाने लगा। उसी समय से अधिक मास (मलमास) पुरुषोत्तम मास के नाम से विख्यात हो गया|

इस माह में जप, तप, तीर्थ यात्रा, कथा श्रवण का बड़ा महत्व होता है। अधिक मास में हर दिन भागवत कथा सुनने से अभय फल की प्राप्ति होती है। मलमास को भगवान विष्णु की पूजा के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।  इस मास में भगवान शिव की आराधना बेहद फलदायी होती है।
धर्म ग्रंथों में ऐसे कई श्लोक भी वर्णित है जिनका जप यदि पुरुषोत्तम मास में किया जाए तो अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है। अगर अतुल्य पुण्य की प्राप्ति चाहते हैं तो श्रीकौण्डिन्य ऋषि के इस मंत्र का जप करें-

मंत्र-
गोवद्र्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्।
गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम्।। 
इस मंत्र का जप करते समय पीत वस्त्र (पीला कपड़ा) धारण करें| धर्मग्रंथों में लिखा है कि इस मंत्र का एक महीने तक भक्तिपूर्वक बार-बार जप करने से अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है|
दान करते समय निम्न मंत्र का जाप करें :-
ऊँ विष्णु रूप: सहस्त्रांशु सर्वपाप प्रणाशन: ।
अपूपान्न प्रदानेन मम पापं व्यपोहतु ।
इस मंत्र के बाद भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हुए निम्न मंत्र बोलें :-
यस्य हस्ते गदाचक्रे गरुड़ोयस्य वाहनम ।
शंख करतले यस्य स मे विष्णु: प्रसीदतु ।।

पुरुषोत्तम मास में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और गणपति अथर्वशीर्ष मनुष्य को पुण्य की ओर ले जाते हैं। भागवत कथा व पुरुषोत्तम मास का संयोग भी अपने आप में बहुत दुर्लभ है। कहते हैं कि स्वर्ग में सब कुछ मिल सकता है, पर भागवत कथा नहीं। भगवान मिल जाएंगे, लेकिन भगवान की कथा नहीं। अधिक मास अर्थात पुरुषोत्तम मास भगवान विष्णु ने मानव के पुण्य के लिए ही बनाया है।

पुराणों में उल्लेख है कि जब हिरण्य कश्यप को वरदान मिला कि वह साल के बारह माह में कभी न मरे तो भगवान ने मलमास की रचना की। जिसके बाद ही नृसिंह अवतार लेकर भगवान ने उसका वध किया। इस माह में भगवान विष्णु के नाम का जाप करना ही हितकर होता है। इस जाप से ही पापों से मुक्ति मिलती है।
जिन दैविक कर्मों को सांसारिक फल की प्राप्ति के निमित्त प्रारंभ किया जाए, वे सभी कर्म वर्जित हैं। जैसे तिलक, विवाह, मुंडन, गृह आरंभ, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत या उपनयन संस्कार, निजी उपयोग के लिए भूमि, वाहन, आभूषण आदि का क्रय करना, संन्यास अथवा शिष्य दीक्षा लेना, नववधू का प्रवेश, देवी-देवता की प्राण-प्रतिष्ठा, यज्ञ, वृहद अनुष्ठान का शुभारंभ, अष्टाकादि श्राद्ध, कुआँ, बोरिंग, तालाब का खनन आदि का त्याग करना चाहिए।

इसमें रोग निवृत्ति के अनुष्ठान, ऋण चुकाने का कार्य, शल्यक्रिया, संतान के जन्म संबंधी कर्म, सूरज जलवा आदि, गर्भाधान, पुंसवन, सीमांत जैसे संस्कार किए जा सकते हैं। यात्रा करना, साझेदारी के कार्य करना, मुकदमा लगाना, बीज बोना, वृक्ष लगाना, दान देना, सार्वजनिक हित के कार्य, सेवा कार्य करने में किसी प्रकार का दोष नहीं है। इस माह में व्रत, दान, जप करने का अव्ययफल प्राप्त होता है। व्यक्ति यदि गेहूँ, चावल, मूँग, जौ, मटर, तिल, ककड़ी, केला, आम, घी, सौंठ, इमली, सेंधा नमक, आँवला का भोजन करे तो उसे जीवन में कम शारीरिक कष्ट होता है।
उक्त पदार्थ या उससे बने पदार्थ उसके जीवन में सात्विकता की वृद्धि करते हैं। उड़द, लहसुन, प्याज, राई, मूली, गाजर, मसूर की दाल, बैंगन, फूल गोभी, पत्ता गोभी, शहद, मांस, मदिरा, धूम्रपान, मादक द्रव्य आदि का सेवन करने से तमोगुण की वृद्धि का असर जीवनपर्यंत रहता है।
इस माह में जितना हो सके उतना संयम अर्थात ब्रह्मचर्य का पालन, फलों का भक्षण, शुद्धता, पवित्रता, ईश्वर आराधना, एकासना, देवदर्शन, तीर्थयात्रा आदि अवश्य करना चाहिए।
सभी नियम अपने सामर्थ्य अनुसार करना चाहिए। यदि पूरे मास यह नहीं हो सके तो एक पक्ष में अवश्य करना चाहिए। यदि उसमें भी असमर्थ हों तो चतुर्थी, अष्टमी, एकादशी, प्रदोष, पूर्णिमा, अमावस्या को अवश्य देव कर्म करें। इन तिथियों पर भी कर पाएँ तो एकादशी, पूर्णिमा को परिवार सहित कोई भी शुभ काम अवश्य करें। अधिकमास की कथा, माहात्म्य का भी पाठ करने से पुण्यों का संचय होता है।            : अंजु आनंद

                                                         

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