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अक्षयनवमी - आंवला नवमी





कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षयनवमी व आंवला नवमी कहते हैं।
अक्षय नवमी के दिन ही द्वापर युग का प्रारम्भ माना जाता है। अक्षय नवमी को ही विष्णु भगवान ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्माण्ड की बेल हुई। इसी कारण कुष्माण्ड का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसमें गन्ध, पुष्प और अक्षतों से कुष्माण्ड का पूजन करना चाहिये। विधि विधान से तुलसी का विवाह कराने से कन्यादान
तुल्य फल मिलता है। मान्यता है कि कार्तिक मास की  नवमी को आंवला के पेड़ के नीचे अमृत की वर्षा होती है। कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि में आंवले की पूजा को पुत्र प्राप्ति के लिए भी विशेष लाभदायक माना गया है। मान्यता है कि कार्तिक मास की  नवमी को आंवला के पेड़ के नीचे अमृत की वर्षा होती है। कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि में आंवले की पूजा को पुत्र प्राप्ति के लिए भी विशेष लाभदायक माना गया है।
विधान
प्रातः स्नान करके शुद्ध आत्मा से आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा मे बैठकर पूजन करना चाहीए। पूजन के बाद आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध का अर्घ्य देना चाहीए। इसके बाद पेड़ के चारो ओर कच्चा धागा बांधना चाहिए। जगतजननी के स्वरूप देवी कूष्माण्डा के नीचे लिखे मंत्र का स्मरण करते हुए सूत वृक्ष के आस-पास लपेटें-

इसके बाद घी या कर्पूर दीप जलाकर नीचे लिखे मंत्र से वृक्ष की परिक्रमा व आरती यश व सुख की कामना से करें -
इसके बाद पेड़ के नीचे ब्राह्यण को भोजन कराकर दान दक्षिणा देना चाहीए।

ततपश्चात धात्री वृक्ष (आंवला) के नीचे पूर्वाभिमुख बैठकर 'ॐ धात्र्ये नमः' मंत्र से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धार गिराते हुए पितरों का तर्पण करें। कपूर व घी के दीपक से आरती कर प्रदक्षिणा करें।
अक्षयनवमी कथा
काशी नगर में एक निःसन्तान धर्मात्मा तथा दानी वैश्य रहता था। एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराये लड़के की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हे पुत्र प्राप्त होगा। यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने अस्वीकार कर दिया। परन्तु उसकी पत्नी मौके की तलाश मे लगी रही। एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ। लाभ की जगह उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया तथा लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी। इस पर वैश्य कहने लगा गौवध, ब्राह्यण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार मे कहीं जगह नहीं है इसलिए तू गंगातट पर जाकर भगवान का भजन कर तथा गंगा में स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है।
वैश्य पत्नी गंगा किनारे रहने लगी कुछ दिन बाद गंगा माता वृद्धा का वेष धारण कर उसके पास आयी और बोली तू मथुरा जाकर कार्तिक नवमी का व्रत तथा आंवला वृक्ष की परिक्रमा कर तथा उसका पूजन कर। यह व्रत करने से तेरा यह कोढ़ दूर हो जाएगा। वृद्धा की बात मानकर वैश्य पत्नी अपने पति से आज्ञा लेकर मथुरा जाकर विधिपूर्वक आंवला का व्रत करने लगी। ऐसा करने से वह भगवान की कृपा से दिव्य शरीर वाली हो गई तथा उसे पुत्र प्राप्ति भी हुई।

पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आवंले के पेड़ पर निवास करते हैं। इस दिन आंवला पेड़ की पूजा-अर्चना कर दान पुण्य करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है अन्य दिनों की तुलना में नवमी पर किया गया दान पुण्य कई गुना अधिक लाभ दिलाता है एवं व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
ऐसी मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को आंवले के पेड़ से अमृत की बूंदे गिरती है और यदि इस पेड़ के नीचे व्यक्ति भोजन करता है तो भोजन में अमृत के अंश आ जाता है। जिसके प्रभाव से मनुष्य रोगमुक्त होकर दीर्घायु बनता है। मान्यता है कि आंवला नवमी के दिन ब्राह्मणों को बीज युक्त कुम्हणा दान करने पर कुम्हड़े की बीज में जितने बीज होते हैं, उतने ही साल तक दानदाता को स्वर्ग में रहने की जगह मिलती है।
- आंवले वृक्ष की विधिवत पूजा के बाद कूष्माण्ड या कुम्हडे की गंध-अक्षत से पूजा कर  उसमें इन सामग्रियों को रख योग्य ब्राह्मण को तिलक लगाकर नीचे लिखे संकल्प मंत्र का स्मरण कर दान दें -

इन सामग्रियों के अलावा यथाशक्ति गाय और भूमि का दान भी बहुत मंगलकारी और लक्ष्मी कृपा देने वाला माना गया है।
पुराणाचार्य कहते हैं कि आंवला त्योहारों पर खाये गरिष्ठ भोजन को पचाने और पति-पत्नी के मधुर सबंध बनाने वाली औषधि है। चरक संहिता के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन ही महर्षि च्यवन को आंवला के सेवन से पुनर्नवा  होने का वरदान प्राप्त हुआ था 

ऐसा माना जाता है

·         यदि कोई आंवले का एक वृक्ष लगाता है तो उस व्यक्ति को एक राजसूय यज्ञ के बराबर फल मिलता है।
·         जो भी व्यक्ति अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करता है, उसकी प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है एवं दीर्घायु लाभ मिलता है।
·         अक्षय्यनवमी के दिन ही द्वापर युग का प्रारम्भ माना जाता है।
·         अक्षय्यनवमी को ही विष्णु भगवान कुष्माण्डक दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्माण्ड की बेल हुई। इसी कारण कुष्माण्ड का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसमें गन्ध, पुष्प और अक्षतों से कुष्माण्ड (काशीफल, सीताफल या कद्दू भी कहते हैं) का पूजन करना चाहिये।
·         विधि विधान से तुलसी का विवाह कराने से कन्यादान तुल्य फल मिलता है।
·         इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने कंस-वध से पहले तीन वन की परिक्रमा करके क्रान्ति का शंखनाद किया था।  
पूर्वकाल में जब समस्त संसार समुद्र में डूब गया  तो जगतपिता ब्रह्माजी के मन में सृष्टि उत्पन्न करने का विचार आया। वे एकाग्रचित होकर ऊं नमो नारायणाय का उपांशु जप करने लगे। वर्षों बाद जब भगवान विष्णु उन्हें दर्शन-वरदान देने हेतु प्रकट हुए और इस कठिन तपस्या का कारण पूछा तो ब्रह्मा जी ने कहा- ‘हे! जगतगुरु मैं पुन: सृष्टि आरम्भ करना चाहता हूं। आप मेरी सहायता करें।तब विष्णु जी कहा- ‘ब्रह्मादेव! आप चिंता न करें।विष्णु जी के दिव्य दर्शन एवं आश्वासन से ब्रह्मा जी भावविभोर हो उठे। उनकी आंखों से भक्ति-प्रेम वश आंसू बह कर नारायण के चरणों पर गिर पड़े, जो तत्काल वृक्ष के रूप में परिणत हो गए। ब्रह्मा जी के आंसू और विष्णु जी के चरण के स्पर्श मात्र से वह वृक्ष अमृतमय हो गया। विष्णु जी उसे धात्री (जन्म के बाद पालन करने वाली दूसरी मां) नाम से अलंकृत किया। सृष्टि सृजन के क्रम में सबसे पहले इसी धात्रीवृक्ष की उत्पत्ति हुई। सब वृक्षों में प्रथम उत्पन्न होने के कारण ही इसे आदिरोह भी कहा गया है। विष्णु जी ने ब्रह्मा जी को वरदान दिया- सृष्टि सृजन के क्रम में यह धात्री वृक्ष आप की मदद करेगा। जो जीवात्मा इसके फल का नियमित सेवन करेगी, वह त्रिदोषों- वात, पित्त एवं कफ जन्य रोगों से मुक्त रहेगी। इस दिन कार्तिक नवमी को जो भी जीव धात्री वृक्ष का पूजन करेगा, उसे विष्णु लोक प्राप्त होगा।तभी से इस तिथि को धात्री नवमी के रूप में मनाया जाता है। पद्म पुराण में भगवान शिव ने कार्तिकेय से कहा है आंवला वृक्ष साक्षात् विष्णु का ही स्वरूप है। यह विष्णु प्रिय है और इसके स्मरण मात्र से गोदान के बराबर फल मिलता है।

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