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धनत्रयोदशी / धनतेरस - पांच दिवसीय दीपोत्सव पर्व का आरंभ

धनत्रयोदशी या धनतेरस

कार्तिक मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को धन तेरस कहते हैं इस दिन मृत्यु के देवता यम और भगवान धन्वन्तरि की पूजा की जाती है | धन त्रयोदशी या धन तेरस के दौरान लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद लगभग 2 घण्टे 24 मिनट का समय) के दौरान किया जाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि अगर स्थिर लग्न के दौरान पूजा की जाये तो लक्ष्मी जी घर में ठहर जाती है। इसीलिए धन तेरस पूजन के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है। दीवाली के त्यौहार के दौरान यह (वृषभ लग्न) अधिकतर प्रदोष काल के साथ अधिव्याप्त होता है। धन तेरस के दिन आरोग्य के देवता धन्वन्तरि, धन की देवी लक्ष्मी, धन के देवता कुबेर और मृत्यु के देवता यमराज का पूजन किया जाता है।

शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरी अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए।  मान्यता है कि भगवान धनवंतरी विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरी का अवतार लिया था।
जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थी उसी प्रकार भगवान धनवन्तरि भी अमृत (औषधि) कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। देवी लक्ष्मी हालांकि धन देवी हैं परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए आपको स्वास्थ्य और लम्बी आयु भी चाहिए यही कारण है धन तेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज और भगवान धन्वंतरि की पूजा का महत्व है। शरद्-पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरि, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती लक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था। इसीलिए दीपावली के दो दिन पूर्व धन तेरस को भगवान धन्वंतरि का जन्म धन तेरस के रूप में मनाया जाता है।
धन्वंतरि के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है।
इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
इस दिन सायंकाल घर के मुख्य द्वार पर यमराज के निमित्त एक अन्न से भरे पात्र में दक्षिण मुख करके दीपक रखने एवं उसका पूजन करके प्रज्वलित करने एवं यमराज से प्रार्थना करने पर असामयिक मृत्यु से बचा जा सकता है।
  • शुभ मुहूर्त समय में लक्ष्मी पूजन करने के साथ सप्त धान्य (गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) की पूजा की जाती है| सप्त धान्य के साथ ही पूजन सामग्री में विशेष रुप से स्वर्ण पुष्पा (पीली केतकी / अमलतास) के पुष्प से भगवती का पूजन करना लाभकारी रहता है| इस दिन पूजा में भोग लगाने के लिये नैवेद्य के रुप में श्वेत मिष्ठान का प्रयोग किया जाता है
  • धन तेरस के दिन हल्दी और चावल पीस कर उसके घोल से घर के प्रवेश द्वार पर "" बना दे।
  • धन तेरस के दिन घर में नई चीज, खासकर बर्तन और सोना-चांदी खरीदकर लाने की पारंपरिक रिवाज है। लक्ष्मी गणेश अंकित चांदी का सिक्का खरीदें या चांदी का कोई बर्तन नया बर्तन खरीदे जिसमें दीपावली की रात श्री गणेश देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं।
  • आज के दिन चाँदी खरीदना शुभ माना गया है चाँदी चंद्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है कुछ जगह तो यह कहावत है कि धन तेरस पर खरीदी गई वस्तु में तेरह गुनी वृद्धि होती है।
  • लक्ष्मी जी गणेश जी की चांदी की प्रतिमाओं को इस दिन घर लाना, घर- कार्यालय,. व्यापारिक संस्थाओं में धन, सफलता उन्नति को बढाता है
  •  आज के दिन सुन्दरकाण्ड का पाठ जरूर करें।
  •  धन तेरस की शाम को अखंड दीपक जलाना चाहिए जो दीपावली की रात तक जरूर जलता रह| अगर दीपक भैया दूज तक अखंड जलता रहे तो घर के सारे वास्तु दोष भी समाप्त हो जाते हैं|
  •   गाय के शुद्ध घी के दीपक में केसर दाल कर लाल धागे की बाती लगा कर घर के ईशान कोण में जलाएं |
  •  आर्थिक अनुकूलता के लिए अपने घर के मुख्य द्वार पर आज के दिन तेल का दीपक दो काली गुंजा दाल कर प्रज्वलित करें  गन्धादि से पूजन करके अन्न की ढ़ेरी पर रख दें। स्मरण रहे वह दीप रात भर जलते रहना चाहिये, बुझना नहीं चाहिये
  •  धन तेरस के दिन यदि घर पर छिपकली दिख जाये तो यह समझे की पूरे वर्ष आपके घर पर धन की कमी नहीं होगी
  • इस दिन सूखे धनिया के बीज खरीद कर घर में रखना भी परिवार की धन संपदा में वृ्द्धि करता है. दीपावली के दिन इन बीजों को बाग/ खेतों में लागाया जाता है ये बीज व्यक्ति की उन्नति धन वृ्द्धि के प्रतीक होते है.
  •  धन तेरस और हस्त नक्षत्र का संयोग हरसिंगार का बाँदा घर में ले आएं और महालक्ष्मी पूजन करने के उपरांत लाल कप़डे में लपेट कर तिजोरी में रखें। धन और समृद्धि की बढ़ोत्तरी होती है, धन लाभ के नवीन अवसर प्राप्त होंगे।
  •   अशोक वृक्ष का बांदा चित्रा नक्षत्र में लाकर रखने से ऐश्वर्य वृद्धि होती है।
  • सायंकाल पश्चात तेरह दीपक प्रज्वलित कर तिजोरी में कुबेर का पूजन करें।
  • लक्ष्मी यन्त्र, कुबेर यंत्र और श्री यन्त्र की स्थापना करें 
  
    यमदीप दान
 
अकाल मृत्यु के भय को दूर करने के कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को यम के निमित दीपदान किया जाता है
ऐसा माना जाता है कि धनतेरस की शाम जो व्यक्ति यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आंगन में यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं और उनकी पूजा करके प्रार्थना करते हैं कि वह घर में प्रवेश नहीं करें और किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं। इस दिन लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं।
दीपावली के काल में धन त्रयोदशी, नरक चतुर्दशी एवं यम द्वितीया, इन तीन दिनों पर यम देव के लिए दीप दान करते हैं इनमें धन त्रयोदशी के दिन यम दीपदान का विशेष महत्त्व है
कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनिश्यति ।।-स्कंदपुराण
अर्थात कार्तिक मासके कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन सायंकाल (प्रदोष काल)  में घर के बाहर यमदेव के उद्देश्य से दीप रखने से अपमृत्यु का निवारण होता है
           
कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां तु पावके।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति।।-पद्मपुराण

कार्तिक के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को घर से बाहर यमराज के लिए दीप देना चाहिए इससे अपमृत्यु का नाश होता है।
दीपावली के काल में यमलोक से सूक्ष्म यमतरंगें भूलोक की ओर अधिक मात्रा में आकृष्ट होती हैं। इसलिए इस काल में यह विधि विशेष रूप से करने का विधान है      
यमदीपदान के लिए संकल्प
मम अपमृत्यु विनाशार्थम् यमदीपदानं करिष्ये ।
इसका अर्थ है, अपनी अपमृत्यु के निवारण हेतु मैं यमदीप दान करता हूं ।              
यम दीपदान के लिए प्रदोष काल में हलदी मिलाकर गुंधे हुए आटे का एक बड़ा चौमुखा दीपक बना लें। गेहूं के आटे से  बने दीप में तमोगुणी ऊर्जा तरंगे एवं आपतत्त्वात्मक तमोगुणी तरंगे (अपमृत्यु के लिए ये तरंगे कारणभूत होती हैं) को शांत करने की क्षमता रहती है। स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बत्तियॉं दीपक में एक -दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुँह दिखाई दें अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें और रोली, अक्षत एवं पुष्प से पूजन कर के घर के मुख्य द्वार पर खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को प्रज्वलित करें  और दक्षिण दिशा (दक्षिण दिशा यम  तरंगोंके लिए पोषक होती है अर्थात दक्षिण दिशा से यमतरंगें  अधिक मात्रा में आकृष्ट एवं प्रक्षेपित होती हैं) की ओर देखते हुए  यमदेवाय नमःकहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें         
यम दीपदान का मन्त्र :
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह |
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम ||
इसका अर्थ है, धन त्रयोदशी पर यह दीप मैं सूर्यपुत्र अर्थात् यम देवता को अर्पित करता हूं। वे मुझे मृत्यु के पाश से मुक्त करें और मेरा कल्याण करें
असामयिक मृत्यु के निवारण हेतु यम के चौदह नामों का उच्चारण कर तर्पण किया जाता है, .यम, . धर्मराज . मृत्यु . अंतक . वैवस्वत . काल . सर्वभूतक्षयकर . औदुंबर . दध्न १०. नील ११. परमेष्ठिन १२. वृकोदर १३. चित्र १४. चित्रगुप्त
ऐसा करने से अनिष्ट शक्तियों से व्यक्ति का रक्षण होकर उसके देह के चारों ओर सुरक्षा कवच का निर्माण होता है।
धन त्रयोदशी के दिन यमदीप दान करने का आध्यात्मिक एवम शास्त्रीय महत्त्व
 दीर्घ आयु की प्राप्ति
दीप प्राण शक्ति एवं तेजस्वरूप शक्ति प्रदान करता है दीपदान करने से व्यक्ति को तेज की प्राप्ति होती है इससे उसकी प्राण शक्ति में वृद्धि होती है और उसे दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है
 यमदेव का आशीर्वाद
धन त्रयोदशी के दिन ब्रह्मांड में यमतरंगों के प्रवाह कार्यरत रहते हैं इसलिए इस दिन यमदेवता से संबंधित सर्व विधियों के फलित होने की मात्रा अन्य दिनों की तुलना में अधिक होती है धन त्रयोदशी के दिन संकल्प कर यमदेव के लिए दीप का दान करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं
 धन त्रयोदशी के दिन यमदेव से प्रक्षेपित तरंगें विविध नरकों तक पहुंचती हैं इसी कारण धन त्रयोदशी के दिन नरक में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रक्षेपित तरंगें संयमित रहती हैं परिणामस्वरूप पृथ्वी पर भी नरक तरंगों की मात्रा घटती है इसीलिए धन त्रयोदशी के दिन यमदेव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए उनका भाव सहित पूजन एवं दीपदान करते हैं दीपदान से यमदेव प्रसन्न होते हैं

संक्षेप में कहें तो, यमदीप दान करना अर्थात दीप के माध्यम से यमदेव को प्रसन्न कर अपमृत्यु के लिए कारण भूत कष्टदायक तरंगों से रक्षा के लिए उनसे प्रार्थना करना

धन्वंतरि जयंती
समुद्र मंथन के समय देवी लक्ष्मी के साथ ही देवताओं के वैद्य भगवान धन्वंतरि हाथ में दिव्य औषधियों से भरा हुआ अमृत कलश लेकर अवतरित हुए । इसीलिए यह दिन भगवान धन्वंतरि के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है । आयुर्वेदके विद्वान एवं वैद्य मंडली इस दिन भगवान धन्वंतरिका पूजन करते हैं और लोगों के दीर्घ जीवन तथा आरोग्य लाभ के लिए मंगलकामना करते हैं । इस दिन नीम के पत्तों से बना प्रसाद ग्रहण करने का महत्त्व है । माना जाता है कि, नीम की उत्पत्ति अमृत से हुई है और धन्वंतरि अमृत के दाता हैं । अत: इसके प्रतीकस्वरूप धन्वंतरि जयंती के दिन नीम के पत्तों से बना प्रसाद बांटते हैं ।
अतः इस दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन श्रद्धापूर्वक करना चाहिए, जिससे दीर्घ जीवन एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है।

धनतेरस के दिन अपनी शक्ति अनुसार बर्तन क्रय करके घर लाना चाहिए एवं उसका पूजन करके प्रथम उपयोग भगवान के लिए करने से धन-धान्य की कमी वर्ष पर्यन्त नहीं रहती है।

भगवान धनवंतरी को प्रसन्न करने का अत्यंत सरल मंत्र है:  "ॐ धन्वंतरये नमः॥"

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥

अर्थात् परम भगवन को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धनवंतरी कहते हैं, जो अमृत कलश लिए हैं, सर्व भयनाशक हैं, सर्व रोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धनवंतरी को सादर नमन है।
धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरि की मूर्ति या चित्र साफ स्थान पर स्थापित करें और पूर्व की ओर मुखकर बैठ जाएं। उसके बाद भगवान धनवंतरि का आह्वान निम्न मंत्र से करें-

सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं,अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढं निगूढं औषध्यरूपं, धनवंतरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।

इसके बाद पूजन स्थल पर चावल चढ़ाएं और आचमन के लिए जल छोड़े। भगवान धनवंतरि के चित्र पर गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, आदि चढ़ाएं। चांदी के पात्र में खीर का नैवेद्य लगाएं। अब दोबारा आचमन के लिए जल छोड़ें। मुख शुद्धि के लिए पान, लौंग, सुपारी चढ़ाएं। धनवंतरि को वस्त्र (मौली) अर्पण करें। शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां भी अर्पित करें।

रोगनाश की कामना के लिए इस मंत्र का जाप करें-
ऊँ रं रूद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्ये फट्।।
अब भगवान धनवंतरि को श्रीफल व दक्षिणा चढ़ाएं। पूजन के अंत में आरती करें।
पवित्र धनवंतरी स्तोत्र :
ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥
  
कुबेर पूजा
धनतेरस और कुबेर पूजन
धन त्रयोदशी पर देवी लक्ष्मी के साथ देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर की भी पूजा की जाती है माना जाता है  कुबेर भूमि के अंदर दबे हुए खजाने की रक्षा करते हैं
इस मंत्र द्वारा कुबेर देव का ध्यान करना चाहिए-

आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।
कोशं वद्र्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।

धन प्राप्ति के लिए कुबेर देव को इस मंत्र के जाप द्वारा प्रसन्न करना चाहिए-
* ‘ऊं श्रीं ऊं ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः।’
* ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं में देहि दापय
* ‘ऊँ कुबेराय नमः।’
अगर कुबेर की मूर्ति नहीं है तो तिजोरी या गहनों के बक्से को श्री कुबेर के रूप में मान कर उसकी पूजा की जा सकती है । सिन्दूर से स्वस्तिक-चिह्न बना कर 'मौली' बाँध कर कुबेर का आह्वान करें पुष्पांजलि समर्पित करें
समस्त धन सम्पदा के स्वामी कुबेर के लिए धनतेरस में सायंकाल 13 दीप समर्पित किये जाते हैं।

 श्री यन्त्र  पूजन
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धन त्रयोदशी और दीपावली को यंत्र राज श्रीयंत्र की पूजा का अति विशिष्ट महत्व है श्रीयंत्र का उल्लेख विभिन्न प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलता है। महापुराणों में श्री यंत्र को देवी महालक्ष्मी का प्रतीक कहा गया है । इस यंत्र को मंदिर या तिजोरी में रखकर प्रतिदिन पूजा करने प्रतिदिन कमलगट्टे की माला पर श्री सूक्त के पाठ श्री लक्ष्मी मंत्र के जप के साथ करने से लक्ष्मी प्रसन्न रहती है और धनसंकट दूर होता है
इस यंत्र की कृपा से मनुष्य को धन, समृद्धि, यश, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति होती है। श्री यंत्र के पूजन से रुके हुए कार्य बनते हैं श्री यंत्र की श्रद्धापूर्वक नियमित रूप से पूजा करने से दुख दारिद्र्य का नाश होता है ।आज श्री यन्त्र की विधिवत  स्थापना करें। श्री सूक्तम, लक्ष्मी सूक्तम, कनकधारा स्तोत्र, लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ करें। दक्षिणावर्ती शंख  दूध भरकर श्रीयंत्र का अभिषेक करें। 

श्री लक्ष्मी  पूजन
 
माता लक्ष्मी की सामान्य पूजा उपचारों गंध, अक्षत, फूल, फल अर्पित कर धूप और घी का दीप (घी का दीपक पूरी रात जल सके) लगाने के बाद लक्ष्मी स्तुति का पाठ करें। माँ लक्ष्मी को बताशा, पान, मखाना या मखाने की खीर, सिंगाड़ा फल जरूर अर्पित करें। बाद में स्वयं भी प्रसाद रूप में ग्रहण करें।
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
नमस्ते गरुडारूढ़े कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदु:खहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवी महालक्ष्मी भुक्ति-मुक्तिप्रदायिनी।
मन्त्रपूते सदादेवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।

ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं महालक्ष्मी मम गृहे आगच्छ आगच्छ स्वाहा इस मंत्र का धन तेरस से दिवाली तक सुन्दर चमकदार स्फटिक की माला से प्रतिदिन जप करें। श्वेत रेशमी वस्त्र का आसन हो तथा मुख पूर्व अथवा उत्तर की तरफ हो
ताम्बे की तश्तरी पर चावल से अष्टदल कमल बनायें और उसके बीच में लक्ष्मी चरण रखें। अब इस थाली को पूजाघर में रख दें। धन तेरस के दिन से दीवाली तक रोज़ाना सुबह-शाम लक्ष्मी माता की आरती करें। दक्षिणावर्ती शंख में जल डालकर पूरे घर में छिड़कें।


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